________________ [40] पञ्चकल्प-भाष्ये जो पुण ण जाण एवं तस्स विही होति मा करयव्वा। जणपञ्चधट्ठताए जाणंतमजाणए वावि // 361 // कडिपट्ट भंड छिहली कत्तरि खुर लोय परमतं पाढे। धम्मकह सण्णि राउल ववहार विगिचणं कुज्जा॥ कडिपट्टभंडछिहली कीरति णवि धम्म अम्ह चेवासी कत्तरि खुरेण णिच्छे हाणी एशेश जालोओ / / 363 // लोएवि कए पच्छा भिक्खुगमादीमताई पाटिंति / तंपि य अणिच्छमाणे पाहिँति छलियकव्वाई 364 ताणिवि अणिच्छमाणे धम्मकहाता विहू अणिच्छते। परतित्थियवत्तव्वं दिज्जति ताहे ससमए वि / / 365 // तंपि य अणिच्छमाणं उसमतो तस्स दिज्जए सुत्तं / अण्णोपणसुत्तपल्लव पुवावरओ असंबद्धं // 366 // घीयारगोयरे थेरसंजुतो रत्ति दूरि तरुणाणं। गाहेह मर्मपि ततो थेरा जुत्तेण गाहिंति // 367 // घेरग्गकहा विसयाण जिंदणा उट्टणिसयणेगुत्ता। चुक्खलितम्मि बहुसो सरोसमिव तज्जए तरुणा // कतकज्जा से धम्मं कहिंति मुंचाहि लिंगमेयंतिं / मा हण दुएवि लोए अणुव्वता तुज्झ णो दिक्खा //