________________ [2] पञ्चकल्प-भाष्ये भत्ती य सत्थकत्तरि तं कयउवओगगोरवं सत्थे / एएण कारणेणं कीरइ आदी णमोकारो // 5 // वद अभिवाद-थुतीए सुभसहो गहा तु परिगीतो। वंदणपूयणणमणं थुणणं सक्कारमेगट्ठा भई ति सुंदरत्ति य तुल्लत्यो जत्थ सुंदरा बाहू। सो होति भद्दबाहू गोण्णं जेणं तु बालत्ते // 7 // पाएणं (ण) लक्खिजइ पेसल भावो तु बाहुजुयलस्स / उववण्णमतो णामं तस्सयं भद्दयाहुत्ति // 8 // अण्णे वि भद्दबाहू विसेसणं गो (त्त) पण गहणपाईणं / अण्णसिं पिय सिद्धे विसेसणं चरिमसगलसुतं // 2 // चरिमो अपच्छिमो खलु चोहसपुव्वा उ होति सगलसुतं / सेसाण वुदासट्ठा सुत्तकरज्झयणमेयस्स किं तेण कयं सुत्तं ? जं भण्णति तस्स कारतो सो उ। भण्णति गणधारीहिं सव्वसुयं चेव पुत्वकतं // 11 // तत्तो चिय णिज्जूढं अणुग्गहट्ठाए संपयजतीणं / तोमुत्तकारओ खलु स भवति दसकप्पववहारे // 12 // वंदे तं भगवंतं बहुभद्द सुभद्द सव्वओभदं। पवयणहियसुयकेउं सुयणाणपभावगं धीरं // 13 //