________________ सातवाहननृपपृच्छा [ 171] कारणे-अहिरगते य पडिबद्धे संविग्गे य सलद्धिए। अवठिए य पडिबुज्झी गुरु अमुदी जोगकारए 1533 गच्छा य अलद्धीओ ओमाणं चेव अणहियासो य। गिहिणो य मंदधम्मा सुद्धं च गवेसए उवहिं 1534 एपहिं कारणेहिं उस्सारायारिहो उ बोधव्वो (दा)। उस्मारो दिठिवादे धम्मकही गंडियणिमित्तं 1535 उस्मारकप्प एसो समासओ वण्णिओ मए एवं / लोगाणुआगमेत्तो वोच्छामि अहं समासेणं // 1536 // मेहावीमीसम्मी ओहामिय कालगज्जथेराणं। मज्झंनिएण अह सो खिसंतेणं इमं भणितो // 163 / / अतिबहुतं तेऽधीतं णय णातो तारिसो मुहत्तो उ। जत्थ थिरो होति सेहो णिक्खंतो अहो! हु बोदत्तं // तो एवं छउमत्थं भणितो अह गंतु सो पतिट्ठाणं / आजीविसकासमी सिक्खति ताहे णिमित्तत्थं 1539 अह तम्मि अहीयम्मी वडहेट्ठ णिवेट्ठ अएणय कयाति / साताहणो णरिंदो पुच्छइमा तिण्णि पुच्छाओ // 1540 // पसुलेंडि पढमताए बितिय समुद्दे व केत्तियं उदयं ? / ततियाए पुच्छाए महुरा य पडेज्ज व ण वत्ति? 1541