________________ [228] पञ्चकल्प-भाष्ये बाहिं सव्वत्थऽसिवं तत्थ सिवं तेण कालदुयगमि / पुण्णे वि ण णिग्गच्छे अणुपच्छाभाव अणुवासी॥ आलंबणे विसुद्धे सुत्तदुतं परिहरे पयत्तेणं / आसज्ज तु परिभोगं भयणा पडिसेवसंक्रमणे 2047 असिवादीहिं वसंते सुद्धाए वसहीए वसे साहू / सुद्धा वसतीए जतती विसोहि कोडीए पुवं तु 2048 भयणत्तिय जं भणियं पुवप्पतरात्थ जे उ जे दोसा। ते ते पुव्वं सेवे संकमणेऽवी इमा भयणा // 2049 // अप्पाबहुं तुलेतुं जत्थ गुणा तू भवेज्ज बहुतरगा। गच्छं गच्छंताण व तं चेव तहिं करेज्जा उ॥२०५० // असिवादिणिट्ठिए पुण अवक्खेवेण संकमे तत्तो / सत्थं तु पडिच्छंती जइ अच्छे तत्थ सुद्धो उ॥२०५१॥ एतऽणतरविहूणं अणुवासिय जे तु अणुवसे कप्पं / कालहुयावराहे संवयमोऽवराहाणं // 2052 // संवट्टियावराहे तवो व छेदो तहेव मूलं वा। आयारपकप्पे जं पमाण णिम्माणचरिमि / 2053 // अणुवासियाए कप्पो एमेसो वणितो समासेणं / ठितकप्पभो तु तत्तो वोच्छामि गुरूवदेशेणं // 2054 //