________________ प्रव्रज्यायाः प्रकाराः [61] पारंची मूलं वा अवकारिए सेहे होंति चउगुरुगा। सेसेसु ठाणएसुं चउगुरुगा ह मुणेयव्या // 550 // बालं वुड्ढे कीवे जड्डे मत्ते अदंमणे चेव / करमादिजंगिए वा जदि पच्छा होज्ज णिक्खंतो॥ गच्छे संगहियाणं संवासो नमि होति णिहिछो। ण विउत्ताण णियमा एगट्ठाणे य पाएण // 552 // होज्जाहि गुब्विणीय विजह पउमवतिव्व खुड्डमाया या। तं तू उवस्सयम्मी भावियसढे नु वा गावे // जिणपवयणपडिकुट्ठो जो पवावेति लोभदोसेणं / चरित्तठितो तवस्सी लोवेइ तमेव तु चरित्तं // 54 // पव्याविओ सियत्ती सेसं पणगं अणायरणजोग्गं / अदुवा समायरंते पुरिमपदणिवारिया दोसा॥ पवावण मुंडावण सिक्खाक्णुवट्ठभुंज संचसणा। पढमपदहीण सेक्षा पंच पदा तेहिं बज्जलि // 56 // पव्वज्जानु अभिहिया सा पुण होजा कहं तु पव्वज्जा तं वत्तुमणायरिओ गाहालुत्तं इभ आह // 957 / / छंदा रोखा परिजुण्णा सुविणा णाणं पडिमाता। सारणिया रोगिणिया अणाढिया देवसणित्ति 558