________________ . पन्धकारमा [230] पञ्चकल्प-भाष्ये मोल्लगरूवं पि वत्थं अट्ठारसपणितरूवग जहन्न / एत्तो भसयसहस्सं उकोसमोल्लं तु णायव्वं // 2064 // ऊणगअट्ठारसगं वत्थं पुण साहुणो अणुण्णातं / एत्तो बतिरित्तं पुण गाणुण्णातं भवे वत्थं // 2065 // जिणथेराणं कप्पं अहुणा बोच्छामि आणुपुत्वीए / जं जत्य जहा निवयति समासओ तं तहा सुणसु // जिणथेराणं कप्पो जम्हा उ ठितंमि अठिए चेव / ठित अद्वितकप्पाणं जम्हा अंतरगता एते // 1067 // जो तु विसेसो एत्थं तं तु समासेण णवरि वक्वामि। जिणथराणं कप्पे जिणकप्पे ला इमं वोच्छं // 2068 // दुयसत्तए तियचउक्कगस्स अद्वद्धएगछेदेणं / अवि होज्ज कालकरणं पुणरावत्तीण विय तेसिं // पिंडेसणा उ सत्त उ हवंति पाणेसणा दु सत्तेए / चतु सेज्ज वत्थ पाते तिण्णेते चउकगा होति // 2070 // दोण्णाऽऽदिमा उ सत्तसु अवणेतुं सेस उवरिमा पंच। अद्ध होति छेदे दो दो अवणे चउकेसु / 2071 // गेण्हंलि उवरिमासु तत्थ अवि घेत्तु अण्णतरियाए। हेडिल्लासु ण गेण्हति जदि वि करे कालकिरियं तु //