________________ [56] पश्वकल्प-भाष्ये जे पुण जाती जुंगित जाती कम्मे [सिप्पे] य तिणि वि ण दिक्खे / बितियपदे दिक्खज्जा इमेहिं अह कारणेहिं तु // 505 // जाहे य माहणेहिं परिभुत्तो कम्मसिप्पपडिविरतो। अद्धाण परविदेसे दिक्खा से अन्भणुण्णाया। दा 506 कम्मे सिप्पे विज्जा मंते जोगेण चेव ओबद्धे। समणाण व समीण व ण कप्पए तारिसे दिक्खा // कम्मं तु उड्डमादि सिप्पं सिक्खिज्जते गुरुवदेसा। लोहारादी तं पुण विज्ज कला लेहमादीओ // 508 // अहवा विज्ज ससाहण मंतो पुण होति पढियसिद्धोतु। वसिकरणपादलेवादिता त जोगा मुणेयव्वा // 509 // गोवालादी कम्मे ओबद्धा छिण्णछिन्नकालेणं / दिण्णा अदिण्ण भतिया दिण्णभतीया ण कप्पंति // सिप्पादी सिक्खंतो सिक्खावितस्स देंति जा सिक्खे। गहिताम्म वि सव्वं पीजच्चिरकालं तु ओबद्धो / / 511 // बंध वहो रोहो वा हविज्ज परिताव संकिलेसो वा। ओषद्धगम्मि दोसा अवण्ण सुत्ते य परिहाणी // 512 // मुक्को व मोइओ वा अहवा वीसज्जितो णरिंदेणं / अद्धाण परविदेसे दिक्खा से अब्भणुण्णाया। दा५१३