________________ [ 240] पञ्चकल्प-भाष्ये बालाणं वुड्ढाणं भिक्खुमादीण चेव सव्वेसिं / संखेवेण महत्थो उवदेसो कीरई इणमो // 2154 // कप्पे सुत्तत्थविसारएण थामावहारविजढेण / भत्तादिलंभऽलंभे सकारजढेण होयव्वं // 2155 // कति थेरकप्पे सुत्तत्थविसारएण साहूण / सव्वत्थेसू सबलं ण गृहियव्वं समत्थेणं // 2156 // आहारमादिएहिं दटुं धीयारमादिपुर्जते / साहू अपुज्जमाणे ण एव मणसा विचिंतेज्जा 2157 पहजंती अजया वयं तु सव्वण्णु मरगमोदिण्णा / हा कह णु ण पुजामो ण कर मणदुक्कडं एवं // 2958 // सकारपुरकारे परीसहे तू अहियासिओ एवं / जूरंते णऽहियासिओ तम्हा सुमणेण होयव्यं 2159 वीसइविहकप्पो तू एसो खलु वणितो समासेणं / वायालकप्पमहुणा गुरूवएसेण वोच्छामि // 2160 // दव्वे भावे तदुभरकरणे वरमणमेव साहारो। णिव्धेस अंतर जयंतरे य ठित अहिते चेव / 2161 // ठाण जिण घेर पज्जुसणक्षेत्र सुत्ते चरित्तमज्झयणे / उद्देस वायण पडिच्छणा य परियऽणुप्पेहा // 2162 //