________________ पञ्चकल्प-भाष्ये घंभस्स वयस्स फलं अयगोले चेव होंति छकाया। णिसिभत्तमंतराए चारग अजसो य पडिबंधो // 229 // लोगो बेती पेच्छह इणमो बंभवईण तु फलं तु। अयगोलो विव तत्तो डहती सो जित्तिए मुको // 230 // भत्त णिसि मग्गमाणा दिंते तू राइवत्तभंगो तु। हवइ अदितम्मि तु अंतराइयं बेइ लोगो य // 231 // चारगपाला हु इमे जे घालाइं तु एव रुंभंति। लोगे जायति अजसो अहह इमो णिरणुकंपत्ति 232 तेण य पडिबंधेणं पडिबद्धा णवि कहिंचि विहरति / जे दोसा णीयवासे ते पावंते य अच्छंता // 233 // ऊणठे णत्थि चरणं पव्वावितो वि भस्सई चरणा। मूलावरोहिणी खलु णारभते वाणिओ चेझें // 234 // उग्घायमणुग्घायं णाऊणं छव्विहं तवोकम्मं / एमेव छेदछविह जिण चोद्दसपुविएदिक्खा // 235 // उग्घायमणुग्घातो मासो चउ छच्च छव्विह तवे सो। एमेव छव्विहो चिय छेदो सेसाण एकेकं // 236 / एयं पायच्छित्तं णाउं पव्वावए तओ बालं / णवरं पव्वाविती जिण चोदसपुब्वि अतिसेसी 237 ते जाणिउं गुणागुण बहुगुण णाऊण तेण दिक्खंति। के पुण जिणमादीहिं दिक्खिय बाला इमें सुणसु //