________________ प्रत्येकबुद्धानामुपधिः [165] उग्गह णंतग पट्टो अड्ढोरुग चलणिया य बोद्धव्वा। अभितर बाहिणियंसणीय तह कंचुए चेव // 1481 // उकच्छिय वेकच्छिय संघाडी चेव खंधकरणी य / ओहोवहिम्मि एते अज्जाणं पण्णवीसं तु // 1482 // सत्तय पडिग्गहम्मि रयहरणं चेव होति मुहपोत्ती। एसो तु णव विकप्पो उवही पत्तेयबुद्धाणं // 1483 // एगो तित्थगराणं णिक्खममाणाण होति उवही उ। तेण परं णिरुवहि ऊ जावजीवाए तित्थगरा॥१४८४॥ जिणा बारसरूवाइं थेरा चोद्दसरूविणो। अज्जाणं पण्णवीसं तु अतो उड्ढं उवग्गहो 1485 एसो उवहीकप्पो समासतो वण्णिओ जहाकमसो।दा संभागकप्पमहुणा समासतो मे णिसामेह // 1486 // संभोगपख्वणता सिरिघर सिवपाहुडे य संभुत्ते / दसणणाणचरित्ते तवहेतुं उत्तरगुणेसु // 1487 // ओह अभिग्गह दाणग्गहणे अणुपालणाय उववाए। संवासम्मि य छट्ठो संभोगविही मुणेयव्यो / पडिदार गाहा // 1488 // उवहि सुय भत्तपाणे अंजलीपग्गहे इय / दावणा य निकाए य अन्भुट्ठाणेत्ति आवरे // 1489 //