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________________ नयकल्प.. [249] अहवा वि तिणि विणया दव्वहित पज्जवहित गुणट्ठी पज्जायविसेस चिय सुहुमतरागा गुणा होंति // 35 // एगगुणकालगादिसु परिसंखगुणठितो तु णायव्यो / दवाओ गुणाणन्ने गुणा विसेसत्ति एगट्ठा // 2236 / / आदिल्ला तिणि णया एको वितिओ य होति उज्जु सुओ। सदादितिणि वेको तिनिणया होति एवं वा 2237 / / अहवाविणिगमसंगहववहारुज्जुसुए होति चतुरेते। सद्दणय तिणि एको पंच गया होंति एवं तु // 2238 // अहवा वि होज्ज छकं गमो संगाहिगो असंगाही। संगहिगो संगहं तू ववहारपविट्ठ असंगाही // 2239 / तम्हा तु संगहणओ ववहारो चेव होति उजुसुत्तो। सदो य समभिरूढों एवंभूतो य छक गया॥२२४०॥ एते पुण सव्वे वी दुग तिग पंण छक्क मेलिया संता। सोलस नयंतराई समासओ होंति एयाइं // 2241 / / जदि कुणति दवियकप्पं एतेहि जयंतरेहिं तु विसुद्धं / करणठाणपसत्था ते खलु होति मुणेयव्वा // 2242 // बकरेंते अपसत्था कप्पे स जयंतरे समक्खाओ। कप्पे ठितमठिए. पुण वोच्छामऽहुणा समासेणं 2243
SR No.004385
Book TitlePanchkappabhasam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLabhsagar
PublisherAgamoddharak Granthmala
Publication Year
Total Pages332
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_panchakalpa_bhashya
File Size16 MB
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