________________ [14.] पञ्चकल्प-भाष्ये केण पुण कारणेणं गच्छे असुद्धं पि उग्गमादीहिं / घेप्पति ? भण्णति सुणसू कारणमिणमो समासणं // रयणाकरोव्व जम्हा उ आगरो होति सव्वसोवाणं। णाणादीण य पभवो ततो उ मोक्खा उ तो रम्ग्वे // आइण्णता महाणो कालो विसमा सपकवओदोसा। आदितिगभंगगेणं गहणं भणितं पकप्पम्मि 1616 तियतिक्कंतपमाणे अणुवासो चेव कारणनिमित्तं / परिकम्मण परिहरणे उवही अतिरित्तगपमाणो॥ गच्छो सबालवुढो गिलाणसेहादिएहिं आदिण्णो। एसो व महाणी तू तस्स तु दुलभं तिगविसुद्धं 1618 कालो विसमो दुभिक्खमादिदोसा सपक्खओ उ इमे / पासत्थादी बहवे ओमाणंतो तओ होति 1619 अहव असंविग्गादी जह महराकोट्टइल्लगा केइ / मायाए उग्गमंती सड्ढा अपि कोवि नवि जाणे // एतेहिं कारणेहिं अलंभे आइतिगभंगगहणं तु / आदितिगमुग्गमादी भंगो तू भंसणा होति // 1621 // कारणतो तिविहंपी माणं तू अतिकमज्ज उ कदादि। किं पुण तिविहं माणं? भण्णति इणमो णिसामेह //