________________ [ 150] पञ्चकल्प-भाष्ये पंचमो चियत्तकिच्चो सेहो छट्ठो य होति बोद्धव्यो। एसो य छव्विहो खलु चउव्विहो वा इमो अण्णो / / दमणम्मि य वंतम्मि चरित्तम्मि य केवले / चियत्तकिचे मेहे य उवट्ठप्पा तु आहिया // 1348 // दसण चरित्तवंते पारंचणवतो पि पविसंति। तो जेणं भवंती तु एवं सेसा भवे चतुरो // 1349 // दसणवंते य तहा जीवणिकाया य जो समारभती। उठावणाए भयणा एतसिं होति दोण्हंपि // 1350 // अणाभोएण मिच्छत्तं संकंते सम्मत्तं पुणरागते / नमेव तस्स पच्छित्तं जं सम्म प्रडिवज्जती // 1351 // आभोगेण उ मिच्छत्तं संकते सम्मत्तं पुणरागते / जिणथेराण आणाए मूलच्छेज्जं तु कारए // 1352 // छण्हं जीवणिकायाणं अप्पज्झो तु विराहतो। तिविहेण पडिकते मूलच्छेज्जं तु कारए // 1353 // छण्हं जीवणिकायाणं अणप्पज्जो तु विराहतो। आलोइय-पडिकंतो सुद्धो हवति संजतो // 1354 // जीवणिकायारंभे दसणवंते य भणिय पच्छित्तं / तं देइ सुत्तविहिणा अन्नह देंते इमे दोसा // 1355 //