________________ [102] पञ्चकल्प-भाष्ये एक्कगसंजोगादिसु उप्पज्जंते उ जत्तिया भंगा।" तेसिं संखाणयणे करणं तु इमं मुणेयव्वं // 918 // एक्कगसंजोगादिसु जत्तियमित्ता हवंति ठाणाउ। तत्तियमेत्ता दुवगा ठावेयव्वा कमेणं तु // 919 // 2 / 2 / 2 / 2 / 2 / 2 // 2 / 4 / 8 / 16 / 32 / 64 // पडिरासिय पडिरासिय अण्णोण्णणऽन्भसाहि ते दुयगा। जावंतिल्लं ठाणं गुणि एवं जा भवे संखा 920 एक्कगसंजोगादिसु एकके भंगसंख तावइया / स चिय एकादीहिं पुणरवि संजोग संगुणिता / 2 / 2 / 2 / 2 / 2 / 2 // 921 // पत्तेयं पत्तेयं एक्कगमादीण सव्वजोगाणं / सा होति भंगसंखा जहक्कमेणं मुणेयव्वा // 922 // कह भंग भवंतेत्थं भण्णति दिक्खेज्ज अहव बहुआउ। मुंडावणादि एवं दुगचउभंगादि चारणिया // 923 // पच्चयहेउं तहियं पत्थारो होइ पत्थरेयव्वो। इमिणा उ लक्खणेणं तमहं वोच्छं समासेणं // 924 // भंगपमाणायामो गुरुओ लहुओ य अक्खणिक्खेवो। मत्ता दुगुणादुगुणो पत्थारो होति णिक्खेवो // 925 // एवं तू पत्थरिए पिच्छसु एक्कादिए उ संजोगे। जे जत्थ उणिवडती पञ्चक्खंते तहिं सव्वो // 926 //