________________ [80] पञ्चकल्प-भाष्ये अण्णत्थ णत्थि ठाओ अहवा होज्जाहि सोऽविएगामी ण य कप्पति एगस्सा संवासो तेण संवासो॥ 721 // सच्चित्तदवियकप्पो एमेसो वन्निओ महत्थो तु / अचित्तदवियकप्पं एत्तो वोच्छं समासेणं // 722 // आहारे उवहिम्मि य उवस्सए तह पस्सवणए य / सेज्जाणिसेज्जठाणे दंडे चम्मे चिलिमिणी य / / 723 // अवलेहणिया दंताण धोवणे कण्णसोहणे चेव / पिप्पलग सूति णखाण छेदणे चेव सोलसमे // 724 // आहारो खलु दुविहो लोइय लोउत्तरो य णायव्यो। तिविहो य लोइओखलु तत्थ इमो होइ णायव्वो७२५ भायणे भोयणे चेव मुंजियव्वे तहव य। भायणे तु इमं थेरा गाहामुत्तमुदाहरे // 726 // सुवण्णरजते भोज्जं मणिसेले विलेवणं। अविदाही घतमायसे पयं तंबे पाणमंबुं च मिम्मते॥ सूपोदणं जवणं तिनि य मंसाणि गोरसो जूसो। भक्खा गुललावणिया मूलफलं हरियगं डागो / / 728 // होइ रसालो य तहा पाणं पाणीय पाणगं चेव / . सागं चऽट्ठारसहा णिरुवहतो लोगपिंडो सो // 729 //