________________ [268) पञ्चकल्प-भाष्ये मातुं माया य पिता भाता भगिणी य एव पितुणो वि। भाउं भगिणीणाऽवच्चा धूता पुत्ताण वि तहेव परंपरवल्लि एसा // 2407 // जदि एतभिधारेती पडिच्छगं ने पडिच्छगन्सेव / अह णो अभिधारेंत्री सुतगुरुणा तो उ आभव्वा 2408 संगारो पुबकओ पच्छा पाडिच्छओ तु सो जाओ! तेण णिलेदेयव्वं उवट्ठिया पुचसेहा मे // 2409 // एवतिएहिं दिणे हिं तुज्झ सगासं अवस्स एहामो। संगारी एव कता चिंधाणि य तेसिं चिंधेह // 2410 // कालण य चिंधेहिं य अविसंवादीहिं तस्स गुरुणिहरा / कालंमि विसंवादए पुच्छिजति कि ण आओ सि 11 संगारदिवसेहिं जदि गेलण्णादि दीवयति तो तु / तस्सेव अह तु भावो विपरिणतो पच्छ पुण जातो // तो होति गुरुस्सेव तु एवं सुतसंपदाए भणितं तु / सुहदुक्खुवसंपण्णे एत्तो लाभं पवक्वामि // 2413 / / वसु मम सुहदुक्खे अहमपि तुज्झं तु एवमुखसंपे / पुरपच्छसंथुया ऊ सो लभती जे य बावीसं // 2414 // सुहदुक्खसंपदेसा एत्तो खेत्तोवसंपदं वोच्छं / खेत्तोग्गही सकोसं वाघाए वा अकोसं तु // 2415 //