________________ [274] पञ्चकल्प-भाष्ये उवसंपद इच्चेसा पंचविहा वणिता समासेणं / खेत्तंमि परे खेत्ते णिक्खामिओ जो तु होज्जाहि // काले उदु वासं वावसिऊणं णिग्गताण जो अण्णो। पढमबितियदिवसेसू णिक्वामे कालओ एसो 2462 इच्चेसो पंचविहो ववहारो आभवंतिओ णामं / पच्छित्ते ववहारो जह दसमुद्देस ववहारि // 2463 // अहुणा तु खेत्तकाला ते वि तु तत्थेव भणित ववहारे। जं तत्थ उ तस्सेसं तमहं वोच्छं समासेणं // 2464 // दुविहे विहारकाले तिविहा सोही उ उवहि भत्ताणं / दिण्णे जतंत सोही अविदिण्णट्टाए आवणे / / 2465 // उडुषद्धे वासासु य विहारकालो य होति दुविहेसो। उग्गम उप्पायण एसणा य एसा तिविह सोही 2466 उड्डुबद्ध मास वासासु हाँति चतुरो विदिण्णकालो तु / एत्थ जयंता जदिवि तु आवजे तह वि सुद्धा तु 2467 मासो चतुमासा पुण संवसमाणा तु तत्थ अतिरित्तं / लग्गति जयंता विहु किमु अजयंता उकिं चणं // उडुबद्ध वामवासं अणुवसमाणो असुद्धभत्तुवही / आयरियप्पमाणा गुणप्पमाणं च समणाणं // 2469 //