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२६ अलबेली आम्रपाली
राजा जब भवन में आया तब रानी त्रैलोक्यसुन्दरी प्रतीक्षा करते-करते थककर नीद्रालीन हो गयी थीं।
दास-दासी जाग गए थे। प्रहरी महाराज को देखते ही झुक झुक कर प्रणाम करने लगे। __ प्रसेनजित त्रैलोक्यसुन्दरी के आवास की ओर मुड़ा और सोपानपंक्ति चढ़ने लगा। ___ वहां महारानी की एक परिचारिका खड़ी थी। महाराज ने पूछा-"महादेवी जागती है?"
"नहीं, महाराज ! आपके आकस्मिक गमन पर महादेवी अत्यन्त चिन्तातुर हो गयी थीं । अभी-अभी वे निद्राधीन हुई हैं।
प्रसेनजित बिना कुछ कहे आगे बढ़ा और त्रैलोक्यसुन्दरी के शयन-कक्ष में प्रवेश कर कपाट बन्द कर दिए।
दक्षिण दिशा के वातायन के निकट एक विशाल पर्यंक था। उस पर शुभ्र शय्या बिछी हुई थी। वह पर्यंक रत्नजटित और स्वर्ण-मंडित था।
उस शयनकक्ष में एक दीपक मंद-मंद जल रहा था। उस शुभ्र शैय्या पर त्रैलोक्यसुन्दरी सो रही थी, मानो कि मोगरे के फूलों का कोई ढेर हो।
प्रसेनजित धीरे-धीरे पयंक के पास गया। वर्षों से महाराज अपनी पिपासा इस सुन्दरी से छिपाते रहे हैं, फिर भी इसकी शरीर संगठना को देखकर वे सब कुछ भूल जाते थे। पिपासा जागृत होती और मन पुकार उठता-यह अतृप्ति ऐसी ही बनी रहे'' 'कभी मिटे नहीं । प्रतीक्षा का आनंद तृप्ति में नहीं होता।
प्रसेनजित पर्यंक के पास जाकर मुग्ध नेत्रों से निद्रित रानी को देखता रहा। फिर उसने अतिसौम्यभाव से रानी के कपोल पर अपना हाथ रखा और धीमे से थपथपाया।
रानी चौंककर उठी और उसके मुंदे नेत्र खुल गए। स्वामी को देखते ही रानी पर्यंक से नीचे उतरी और स्वामी के चरणों में लुढक गयी।
प्रसेनजित ने उसको उठाते हुए कहा-"प्रतिदिन तेरा सौन्दर्य बढ़ता जा
रहा है।"
____ "यह स्वामी की कृपादृष्टि का ही फल है", ऐसा कहकर वह अपना कंचुकी बंध ठीक करने लगी।
त्रैलोक्यसुन्दरी ने भगधेश्वर से कहा-"आप बिना सूचना दिए कल आकस्मिक ढंग से कहां गये थे ?"
__"एक प्रश्न समाहित नहीं हो रहा था। नींद उड़ गयी थी। इसलिए प्रश्न का समाधान पाने आचार्य अग्निपुत्र के पास चला गया।"
"क्या औषधि पूरी हो गयी है ?"