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५. शिक्षा
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कुछ
मनुष्य के जितने भी विचार है वे सब के सब उसके अपने नही होते, कुछ घर के सदस्यों से मिलते है, कुछ साथियो से, तत्कालीन समाज से, कुछ सत्सग से, कुछ साहित्य से, कुछ पत्रपत्रिकाओ से कुछ शास्त्रो से कुछ जीव-जन्तुयो से, कुछ जडपदार्थो से प्राप्त होते है और कुछ अपने ही अनुभव के आधार पर चित्त मे समुदित होते है । कुछ विचार सपक्षरूप मे उदित होते है और कुछ विपक्षरूप मे । कुछ विचारो को मन व्यर्थ समझ कर छोड़ देता है और कुछ को भूल जाता है। जो विचार आज उसे सत्य प्रतीत होते है, कालान्तर मे वे ही विचार असत्य प्रतीत होने लगते हैं और जो विचार आज ग्रसत्य लगते हैं वे ही विचार कालान्तर मे सत्य सिद्ध होते हैं । प्रत विचारो मे सत्य-असत्य का निर्णय चिन्तन मनन से ही होता है ।
विचार प्राय भाषा के माध्यम से प्राप्त होते है । यही कारण है कि मानव सव से पहले भाषा सीखता है, तत्पश्चात् भाषाविज्ञान | शब्द शुद्ध है या ग्रशुद्ध इसका निर्णय वह व्याकरण के नियमो से करता है । छन्द, रस, रीति, काव्य, अलकार गुण, दोष एव शुब्द निप्पत्ति प्रादि का सामान्य एव विशेष ज्ञान ही भाषा विज्ञान है ।
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भाषा-विज्ञान श्रुतज्ञान का अभिन्न अग है
। श्रुत ज्ञान
[ योग एक चिन्तन
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