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से है, अर्थात् देव आदि भवो से है, उसे परलोक-प्राशसा-प्रयोग कहा जाता है । इस लोक मे तपस्या आदि शुभाचरणो के बदले मे मुझे इन्द्र आदि का पद मिले, अथवा नौ.प्रकार का निदान करना 'परलोकाशसा-प्रयोग है ।' जिस साधक की बहुत सी कामनाए इस लोक मे अपूर्ण रह गई है, वह मानव अगामी भव मे सब तरह से सपन्न होने के लिए "परलोकाशसा-प्रयोग" करता है। " ३ उभयलोकांशसा-प्रयोग-जिस बलवती इच्छा का सबध दोनो लोकों से हो वह उभयलोकाशसा-प्रयोग है । यह इच्छा दोनो लोको को स्पर्श करने वाली होती है। इस लोक मे सब तरह समुन्नत बनूं और परलोक मे भी समुन्नत ही वना रहू, अथवा इस लोक में की गई तपस्या आदि के फल स्वरूप में परलोक मे सर्वोच्च देव बनू और वहा से आयुपूर्ण कर इस लोक मे चक्रवर्ती एव राष्ट्रपति आदि बनकर सुख भोगू, यह कामना ही 'उभयलोकाशंसा-प्रयोग है।
सामान्य इच्छाए तीन तरह की होती हैं, किन्तु विशेप विवक्षा से इनके सात भेद इस प्रकार किए गए है।
(क) जीविताशमा प्रयोग जिस इच्छा को सम्बन्ध दीर्घकालिक जीवन से हो, वह इस कोटि मे गभित है। सुख, समृद्धि राजसत्ता, मान-प्रतिष्ठा, शुभ परिवार को प्राप्त कर जीने की 'इच्छा करना या अपने ही स्त्री-पुत्र आदि के जीने की इच्छा करना जीविताशसा प्रयोग है।
(ख) मरणाशसा-प्रयोग-दु-खो एव रोगो से तग आकर मरने की इच्छा करना, मेरा मरण शीघ्र हो जाए ताकि मेरा इस दुख से छुटकारा हो जाए, अथवा लज्जा एव अपमान के वशीभूत होकर मरने की इच्छा या मरने की तैयारी करना योग : एक चिन्तन ]
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