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से जीवन लोक व्यवहार में प्रामाणिक वन जाए, हिंसा, झूठ, चोरी, दुराचार एव तृष्णा का अस्तित्व जिसमें न हो, जिसमें सूक्ष्म पापों से तो नही, मोटे पापो से बचाव हो, उसे भी 'मूलगुण पच्चेक्खान कहा जाता है ।
१. स्थूल - प्राणातिपात का पच्चक्खाण -- संकल्प पूर्वक किसी निरपराधी को मारना, उसे तंग करना और विपत्ति मे डालना 'मोटी हिंसा है । उसका त्याग करना, "स्थूल प्राणातिपात विरमण व्रत" है |
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२. स्थूल - मृषावाद का पच्चवखाण - किसी की धरोहर न दवाना, झूठी गवाही न देना, किसी कन्या या पशु के निमित्त कभी झूठ न बोलना, दूसरा अणुव्रत है ।
३. स्थूल- प्रदत्तादान का पच्चक्खाण - किसी की निधि को खोद कर निकालना, गाठ खोलकर वस्तु निकाल लेना, जेब काटना, बिना आज्ञा के चाबी लगाकर ताला खोलना, मागं मे चलते हुए को लूटना, स्वामी का पती होते हुए भी पड़ी हुई किसी वस्तु को उठा लेना, स्थूल चोरी है । उसका त्याग करना "मूलगुणपच्चक्खाण" है |
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४. स्वदार - संतोषित व्रत - जिसके साथ विवाह हुआ है । उसी स्त्री पर सन्तोष करना, परस्त्री गमन, वेश्या-गमन आदि दुराचारो का त्याग करना एव अल्प सन्तान की कामना रख कर पुण्यदिवसो को छोडकर उदित - वेद- शमन में प्रवृत्त होना - आदि इस व्रत के ही अनेक रूप है ।
५. इच्छा-परिमाण व्रत- अनावश्यक जड़-चेतन पदार्थों का, धन-धान्य का, सोना-चादी का, नौकर-चाकर रखने का और
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योग एक चिन्तन ]
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