Book Title: Yog Ek Chintan
Author(s): Fulchandra Shraman, Tilakdhar Shastri
Publisher: Atmaram Jain Prakashan Samiti
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इच्छामि खमासमणो वदिउ जावणिज्जाए निसीहियाए अणुजाणहं मे मि उगह निसीही "अहो काय काय" सफास खमणिज्जो भे किलामो अप्पाकलताण बहुमुभेण मे दिवसो वइक्कतो? जत्ता भे? जवणिज्ज च भे?' खामेमि खमासमणो ! देवसिय वइक्कम । आवस्सियाए पडिक्कमामि खमासमणाण देवसियाए आसायणाए तित्तीसन्नयराए जकिचि मिच्छाए मणदुक्कडाए, वयंद्रुक्कडाए कायदुक्कडाए।
__ कोहाए माणाए मायाए लोहाए । सव्वकालियाए सम्वमिच्छोवयाराए सव्वधम्माइक्कमणाए आसायणाए जो मे अइयारो को तस्स खमासमणो । पडिक्कमामि निदामि गरिहामि अप्पाणं वोंसिरामि । इस प्रकार अपने धर्माचार्य को नमस्कार करके'' साधु प्रमुख चारे तीर्थ खमाविने, सब्वजीवराशि खमाविने, पूर्वे जे व्रत आदरया छे तेना जे अतिचार दोष लाग्या होय ते सर्व ने पालोई पडिक्कमी निंदी 'नि-शल्य थई ने सर्व पाणाइवाय पच्चक्खामि, सव्व मुसावाय पच्चक्खामि, सन्द 'अदिनादाण पच्चक्खामि, सव्व मेहुण पच्चक्खामि, सव्व परिग्गह पच्चक्खामि । सव्व कोह माण जाव मिच्छादमणसल्ल अकरणिज्ज जोग पच्च
खामि, जावज्जीवाए तिविह. तिविहेणं न करेमि, न कारवेमि करतपि नाणुजाणामि, मणसा वयसा कायसा एम अठारे पाप स्थानक पच्चक्खीने, सव्व असण पाणं खाइम साइम चउविहपि आहार पच्चक्खामि जावज्जीवाए। इस प्रकार चारो आहारो का प्रत्याख्यान करके। . ज.पिय इम सरीर इट्ठ- कत पिय मणुण्ण मणाम धिज्ज बेसासियं समय अणुमय, भडकरडसमाणं, रमण करडगभूय मा णसिय, माण उपह मा ण खुहा, मा ण पिवासा, माण वाला, मा ण योग, एक चिन्तन ]
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करके।

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