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२७. विनय विनम्रता का होना ही विनय है । विनय से मानवता चमकती है, जैसे किसी स्थान में चिन्तामणि रत्न पटा होने पर भी वह उस पुण्यवान को ही प्राप्त होता है जो उसके गुणो की परख करने वाला जौहरी है, जो उसे झुककर उठाने का प्रयास करता है । वैसे ही सम्यग् जान, सम्यग्दर्शन और सम्यक् चारित्र ये तीन अनमोल रत्न चिन्तामणि के समान है, परन्तु इनकी प्राप्ति विनीत व्यक्ति को ही हो सकती है, अभिमानी व्यक्ति इन्हे प्राप्त नही कर सकता।
___ अहकार के नष्ट एव मद होने से जिस गुण की उपलब्धि होती है वही विनय है। विनय से ज्ञान-दर्शन और चारित्र की प्राप्ति होती है। विनीत मानव सब को अच्छा लगता है । वंदना, वात्सल्य, स्तुति, प्रीति, आदर, सत्कार, बहुमान इन सब का ग्रहण विनय शब्द से हो जाता है । यह निश्चित सिद्धान्त है जो श्रद्धेय के प्रति विनीत होगा, वह अवश्य ही विश्ववद्य वन जाएगा।
२८. दास्य पूज्य जनो का या पच परमेष्ठी का दास बन कर कर्तव्य का पालना करना दास्य है । दास्य-भाव अपनाने वाले के लिए वह दिन अधिक दूर नहीं होता जब वह दासत्व से निवृन होकर सदा के लिए स्वामी बन जाता है। जिसका दास बनने से कालान्तर मे जो स्वामी उसे अपने तुल्य बना देता है, वस्तुत उसी स्वामी की दासता उपयोगी मानी जाती है । वह दासता जीवन का पतन नहीं, बल्कि उत्थान करनेवाली होती है। मानवता का विकास २५२ ]
[योग एक चिन्तन