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अनुकम्पा दान अभय-दान, विद्या-दान अन्न-वस्त्र-औषध-दान, सहयोग, आत्मबलिदान- इन सब को इज्या या यज्ञ कहा जाता है। यज्ञ अनेक प्रकार के होते हैं। इस प्रसग में सात्त्विक यज्ञ हो अभीष्ट है, तामसी और राजसी यज नही, क्योकि सात्त्विक यज्ञ करना ही मानवता है। सात्त्विक यज्ञ निम्नलिखित है
रहना
१. स्वाध्याय-यज्ञ अध्ययन-अध्यापन में सैलीन रहना। २. जप-यज्ञ-पठितग्रन्थो का पुन -पुन परिशीलन करना,
या जाप करना। ३. कर्म यज्ञ-सुशिक्षाओ को जीवन मे उतारना, अप्रमत्त
होकर कर्तव्य का पालन करना। ४ मानस-यज्ञ- समाधिस्थ रहना, धर्मध्यान में तल्लीन
रहना। ५ ब्रह्म-यज्ञ-प्रात्मा मे सलीन होना या परमात्मा मे
तल्लीन रहना। ६ देव-यज्ञ-धर्म-गुरु या धर्माचार्य का सम्मान करना। ७ पितृ-यज्ञ - माता-पिता की सेवा या बहुमान करना। ८. भूत-यज्ञ-छोटे-बडे सभी प्राणियो की रक्षा करना किसी
का अहित न सोचना और प्राणि मात्र के लिये अन्न-दान
देना भूतयज्ञ । ६ प्रतिथि-यज्ञ-अतिथियो का सम्मान करना।
इस प्रकार के सात्त्विक यज्ञ मानवता के पोपक'माने
गए है। योग एक चिन्तन ]
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