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इस प्रकार श्री मद्भागवत् के निर्माता महर्षि व्यास ने मानवता के विकास के लिये उपयुक्त जिन तीस गुणो का वर्णन क्यिा है, वे ऐसे गुण हैं जो साम्प्रदायिकता की संकीर्णतानो से मुक्त है, सर्व-जनोपयोगी है, मानव-मात्र के लिये ग्राह्य हैं और जैनत्व के सिद्वान्तो का समर्थन करनेवाले है।
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[योग . एक चिन्तन