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दैवी सम्पत्ति
अभय सत्व - संशुद्धिर्ज्ञानयोग-व्यवस्थितिः । दानं दमश्च यज्ञश्च, स्वाध्यायस्तप आजवम् ।। अहिंसा सत्यमक्रोधस्त्याग शान्तिर-पैशुनम् । दया भूतेष्वलोलुप्त्वं, मार्दवं ह्री-रचापलम् ॥ तेज क्षमा धृतिश्शौचमद्रोहो नातिमानता। भवन्ति सम्पदं देवी-मभिजातस्य भारत ! ॥
, गीता १६-१-३ अर्थात् निर्भयता, भावो की निर्मलता, ज्ञानयोग में मन की स्थिति, सुपात्रदान, इन्द्रिय-दमन, सात्विक यज्ञ, स्वाध्याय, तप, निष्कपटता
अहिंसा, सत्य, अक्रोध, त्याग, शान्ति, अपिशुनता (चुगली न करना), जीव-मांत्र पर दया, अलोभ, हृदय की सुकोमलता, लज्जाशीलता, चपलता से रहित होना
तेजस्विता, क्षमा, धैर्य, पवित्रता, निर्वैरता, अतिमान का न होना
उपर्युक्त सभी गुण पवित्रात्मा के साथ ही जन्म लेते है, इन गुणो को देवी सपत्ति या दिव्य सपत्ति भी कहते है। योग एक चिन्तन
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