Book Title: Yog Ek Chintan
Author(s): Fulchandra Shraman, Tilakdhar Shastri
Publisher: Atmaram Jain Prakashan Samiti
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पल्यक प्रादि प्रामने वेमी वेसी ने, करयल मपरिग्गहियं सिरसावत्त मत्थए अजलि त्ति कटु एवं वयामी
नमोत्थु णं अरिहंताण भगवताण, प्राइगराण तित्थगराणं सयसबुद्वाण ।
पुरिमुत्तमाण पुरिसमीहाण पुरिमवरपुंडरीयाणं पुरिमवरगध-हत्यीण।
लोगुत्तमाण लोगनाहाण लोगहियाणं लोगप्पईवाणं लोग पज्जोयगराण। ___ अभयदयाण चखुदयाण मग्गदयाणं सरणदयाण जीवदयाण बोदियाण।
धम्मदयाणं धम्मदेसयाण धम्मनायगाण धम्मसारहीण धम्मवरचाउरत चक्कवट्टीण। । दीव-ताण-सरण-गइ-पइठाण, अपडिहय वरनाणदंसणधराणं वियदृछउम्याण।
जिणाणं जावयाण, तिण्णाण तारयाण, बुद्धाण बोहयाण मुत्ताण मोयगाणं।
__सबण्णूण सव्वदरिसीण सिव-मयल-मरुय-मणत-मक्खय , मवावाहमपुणरावित्ति सिद्धिगड नामधेय ठाण सपत्ताण नमो जिणाण जियभयाण । ___ एम अनन्ता सिद्ध जी ने नमस्कार करोने, जयवंता वर्तमान तीर्थकरो ने नमस्कार करीने ।
निम्नलिखित पाठ दो बार पढकर धर्माचार्य को नमस्कार 2 करे। २३०]
[ योग'. एक चिन्तन

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