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- १ पाथिवी-धारणा --सबसे पहले एकाग्रमन से इस मध्यलोक मे अवस्थित अत्यन्त, निर्मल, श्वेत रग वाले क्षीर-समुद्र को ध्यान मे देखे, फिर उसके ठीक मध्य मे जम्बूद्वीप प्रमाण लम्वे चौड़े, हजार पखुडियो से युक्त तपे हुए स्वर्ण वर्ण वाले एक कमल के आकार की कल्पना करे । उसके मध्य मे पीले रग वाली सुमेरु के समान ऊची कणिकाओ के दृश्य की कल्पना करे । उसके शिखर पर मणिरत्नो से जड़ा हुआ एक सिंहासन ध्यान मे देखे । फिर उस सिंहासन पर अपने को अष्टविध कर्मों का क्षय करने के लिये उद्यत होकर ध्यान मुद्रा मे बैठे हुए की धारणा करे । इस धारणा का बार-बार हृदय मे नित्यप्रति अभ्यास करना चाहिये। जब इस ध्येय की सिद्धि करने मे सफलता प्राप्त हो जाय, तब दूसरी धारणा का मनन करना चाहिए।
२ प्राग्नेयी धारणा ~ ध्यान करने वाला उसी सिंहासन पर बैठा हुआ चिन्तन करे कि मेरी नाभि के भीतरी भाग से एक श्वेत रग वाला कमल विकसित हुआ है, जिसकी सोलह पखुड़िया हैं, उसकी प्रत्येक पखडी या पत्ते पर अपआ इ ई उ ऊ ऋऋ लु ल ए ऐ, ओ औ अप ये सोलह अक्षर क्रमश. स्वर्णिम वर्ण मे लिखे हुए है। उनके मध्य मे एक पीले रंग वाला अक्षर 'ह' लिखा हुआ भासित हो रहा है। इसी कमल से कुछ ऊपर हृदय कमल प्रीधे मुख खिला हुआ है। उस कमल के पाठ ही पत्ते हैं जिनका रग बिल्कुल काला है । वे काले पत्ते हैं-ज्ञानावरणीय, दर्गनावणीय, वेदनीय, मोहनीय, आयु, नाम, गोत्र और अन्तराय रूप पाठ कर्म है ऐसा चिन्तन करे।
नाभि-कमल के ठीक मध्य मे जो पीले रग वाला 'ह' है। उसमे से धुप्रा निकल कर अग्नि-शिखा मानो भडक उठी है, वह
योग एक चिन्तन
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