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भला जिसने उपधि रखने का ही त्याग कर दिया, वह परिग्रह के पचड़े मे क्यों पड़ने लगा ?
६ क्रोध - विवेक - हिंसा झूठ, चोरी, कुशील और परिग्रह, इन पाच कारणो से क्रोध उत्पन्न होता है । जिसके जीवन से ये पाचो पाप निकल गए है, उसे क्रोध उत्पन्न होने का कभी अवसर ही प्राप्त नही होता । जब ग्राहार, शरीर और उपधि का ही त्याग कर दिया, तब क्रोध की उत्पत्ति का तो अवसर ही समाप्त हो जाता है |
७. श्रभिमान- विवेक जिन जिन कारणो के होते हुए अभिमान की सत्ता बनी रहती है, उन उन कारणो के हट जाने से अभिमान भी सदा के लिए लुप्त हो जाता है ।
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८. माया - विवेक - हिंसा करते हुए कपट किया जाता है, झूठ बोलते हुए, चोरी करते हुए, दुराचार की ओर बढते हुए तथा परिग्रह के निमित्त से प्राणी कपट करता है । कारण का प्रभाव होने पर कार्य का भी प्रभाव हो जाता है । माया चाहे सासारिक हो या धार्मिक, माया के दोनो रूप वर्जित है ।
६. लोभ-विवेक - जिसने श्राहार, शरीर और उपधि का त्याग कर दिया है। उसके हृदय में लोभ पैदा ही नही हो सकता, क्योकि भौतिक पदार्थो के लाभ से लोभ बढता है । ममत्व के त्याग और समत्व की प्राप्ति से लोभ समाप्त हो जाता है ।
१० राग-विवेक - काम- राग, स्नेह-राग और दृष्टि- राग, ये तीन राग अगस्त है । केवल धर्मराग ही प्रशस्त है । धर्मराग को दूसरे शब्दो मे धर्म-श्रद्धा भी कह सकते है | सथारे मे एक धर्मराग ही रह जाता है, शेष सब राग लुप्त हो जाते हैं ।
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I योग | एक चिन्त