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शरीर का नाश होता है तो यह मेरे लिए बड़े सौभाग्य की बात
है |
सयम और तप की विशुद्ध प्राराधना करके जो मृत्यु होती है वही सकाममरण है । इससे विपरीत पापवृत्तियो के चक्र मे फस कर मरना ग्रकाममृत्यु है । वह जन्म-मरण की परपरा को वढाने वाली मृत्यु मानी गई है । यह मृत्यु जीवो को ससारसागर में डुबोती है सकाम मृत्यु जीव को उभारती है और साथ ही अभय बनाती है ।
सयम और तप का नवीनीकरण ही सथारा है । यद्यपि सखना के द्वारा मधारे का पहले से ही अभ्यास प्रारम्भ किया जाता है, तथापि पूर्णतया सथारा तो प्रतिम मास, पक्ष या सप्ताह के भीतर ही किया जाता है । उसमे ग्राचार-विचार आदि मे नवीन कारण किए विना श्राराधक वनना दुशक्य है । नवीनीकरण मे श्रद्धा, सवेग, निर्वेद, धृति प्रादि की साधना पहले की अपेक्षा अधिक होती है । इन गुणो की देखरेख मे ही जीवन समुन्नत होता है ।
सथारे के तीन भेद है उनका विश्लेषण निम्नलिखित है १५ भक्त - प्रत्याख्यान - यह सथारे का पहला भेद है, इसमे सथारा करने वाला स्वय भी अपनी शुश्रूपा कर सकता है और दूसरे से भी करवा सकता है । वह सयारा करने पर भी गमनागमन कर सकता है । उपाश्रय के भीतर कमरे से बाहर या अन्दर ऊपर-नोचे जा-प्रा सकता है । यह सथारा कारण से भी किया जाता है और विना कारण से भी । उपाश्रय के एक भाग मे जहा से मृत्यु के पश्चात् मृत शरीर का निर्हरण किया जाए, वसति से बाहर ले जाया जाए, वही
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[ योग. एक चिन्तन
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