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किया जाता है, उसकी पूर्णता मृत्यु होने पर ही होती है।
याहार त्याग-पाहार चार प्रकार का होता है असण, पाण लाइम, साइम । आर्य मनुप्य जब भी पाहार करते हैं, वे उपर्युक्त चार प्रकार का ही प्रहार करते है। सयारे मे इन सब का परित्याग जीवन भर के लिए किया जाता है ।
शरीर त्याग-शरीर हर प्राणी को प्रिय है। सभी घातक पदार्थो एव हिंसक जन्तुनो मे मानव अपने शरीर को सुरक्षित रखना चाहता है। इसकी रक्षा के लिए मब तरह के उपचार किए जाते है और धन को पानी की तरह बहा दिया जाता है । किन्तु सथारे मे उस गरीर को मुस्कराते हुए मृत्यु को अर्पित कर दिया जाता है, क्योकि साधक अपने शरीर से मोह-ममत्व को हटा लेता है।
उपधि-त्याग-जीवन-निर्वाह के लिए जिन पदार्थों की आवश्यकता मानव को रहती है उन सबको उपधि या उपकरण कहते हैं। जव साधक अपने गरीर पर भी मोह-ममत्व नहीं रहने देता, उसका परित्याग करने को प्रस्तुत हो जाता है, तव उपधि का परित्याग तो स्वत ही हो जाता है। जो अपने शरीर पर भी ममत्व वुद्धि नही रखता, वह वाहर की वस्तुओ पर ममत्व क्यो रखने लगा ? अत सथारे मे उपधि का भी त्याग स्वत हो जाता है।
‘पाप-त्याग-जो कर्म या क्रिया मन को या आत्मा को मलिन करे, अथवा जो जीव को दुर्गति का अतिथि वनाए, वह पाप है। पाप अठारह प्रकार का होता है। उन सबसे निवृत्त होना सथारे मे परमावश्यक है। जैसे कि
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[ योग । एक चिन्तन