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ध्यान का स्वरूप, लक्षण, आलबन और अनुप्रेक्षा ये सब कर्मो के स्थिति घात, रस-घात, कर्मों के प्रक्षय, सवर और निर्जरा, ये सब आत्मा के उत्थान, विकास एवं कल्याण के सफल साधन हैं । जो कार्य-सिद्धि स्थिर प्रकाश में हो सकती है, वह वादल की चचल दामिनी के प्रकाश मे नहीं हो सकती। कोई काम यदि ध्यान से किया जाए वह अवश्य सफल होता है फिर दुःख-निवृत्ति
और परमानन्द की प्राप्ति क्यों न होगी? योगो का संवरण ही ध्यान है और ध्यान है अन्तर्मुखी वृत्ति यो की एकतानता।
RJARA
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[ योग • एक चिन्तन