Book Title: Yog Ek Chintan
Author(s): Fulchandra Shraman, Tilakdhar Shastri
Publisher: Atmaram Jain Prakashan Samiti

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Page 236
________________ kkkkkkk0RRIAsksktotr4%A4.. ३२. मारणान्तिक आराधना 令令令令令令令令空中令令今令令众中参令小事令中印 । अभी तक जिन इकत्तीस योगों का विवेचन किया गया है वे सब साधना-मय जीवन के लिये उपयोगी हैं, परन्तु जीवन के साथ मरण का भी तो अटूट सम्बन्ध है, उसे किसी भी तरह तोडा नही जा सकता। प्रत्येक साधक को एक न एक दिन मृत्यु मे अवश्य जूझना पड़ता है। अत अब मारणांतिक आराधना के रूप में अहिसा-व्रती साधक मृत्यु पर कैसे विजय प्राप्त करे ? इस विषय का विवेचन किया जाता है। सयम एव तप की उत्कर्पता से कषायो एवं शरीर को कृश करना सलेखना है। यदि जीवन एक कला है तो,मरण भी एक कला ही है। जिसको जीने की कला नही पाती, उसे मरने की कला भी नही आ सकती। ___पहले के इकत्तीस साधन चारित्र का निर्माण करके जीने की कला सिखाते हैं, किन्तु जीवन की जितनी भी कलाए है, उन सव मे मरण-कला चूलिका के समान है या माला मे सुमेरु के समान है । इसी कला के सौन्दर्य का निर्माण करने के लिये उसमे आनन्द भरने के लिये उपयुक्त इकत्तीस जीवनकला के साधन वताए गए हैं । यह कला कपायो को मदता एवं क्षीणता से आती है, सिद्धि या प्रसिद्धि से नही। २०८] [ योग एक चिन्तन

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