________________
मारणान्तिक आराधना की भूमिका ही सलेखना है । काल की अपेक्षा से सलेन्वना तीन प्रकार की होती है-जघन्य, मध्यम और उत्कृष्ट | जघन्य छह मास का काल, मध्यम एक वर्ष का काल और उत्कृष्ट वारह वर्ष का काल सलेखना-काल है।
बारह वर्ष के सदेखना-काल का क्रम इस प्रकार हैसलेखना करनेवाला साधक सर्व प्रथम चार वर्षो मे रस-परित्याग तप अर्थात् आयबिल करे । मध्य के चार वर्षों मे उपवास वैला, तेला प्रादि विविध विध तप करता रहे, फिर दो साल तक एकान्तर तप करे । पारणे के दिन पायबिल करे। उसके बाद ग्यारहवे वर्ष के पूर्वार्द्ध मे छह महीने तक वेला, तेला, चौला आदि तप न करे, किन्तु उत्तरार्द्ध के छह महीनो मे तेला, चौला आदि उत्कृष्ट विविध तपो की आराधना करे। इस पूरे वर्ष मे पारणे के दिन आयबिल करे, वारहवे वर्ष मे निरन्तर प्रायविल करे। जब आयु एक महीने की या एक पक्ष की रह जाए तव पूर्णतया अनगन करे । (उत्तरा०प्र० ३६ । गा० २५१ से लेकर २५५ तक)।
आमरण अनशन का प्रागभ्यास या पूर्वाभ्यास ही सलेखना है। प्रागभ्यास की सफलता ही सथारे की सफलता है। इस प्रक्रिया को ही मारणातिक आराधना कहते हैं । कषाय भाव का अत करने के लिए, मोह-ममत्व के इधर-उधर फैलते हुए जाल का छेदन करने के लिए या उन्मूलन करने के लिए सयारा किया जाता है । इतना ही नही, जीवन के निर्वाहक और पोषक तत्त्वो को घटाते हुए सभी विकारो को मद या क्षोण करना ही सन्लेखना है। यह सलेखना-बत वर्तमान शरीर का अत होने तक लिया जाता है। इस व्रत की आराधना गृहस्थ और साधु दोनो कर सकते हैं।
शका हो सकती है कि अनगन के द्वारा शरीर का अन्त करना योग एक चिन्तन ]
[ २०९