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देखना सांसारिक विषय नही है। स्वाभाविक रूप से सुगन्ध का अनुभव हो जाना तथा समवसरण का सुगंधमय वातावरण भी सासारिक विषय नहीं है । जीने के लिए खाना उचित है, खाने के लिए जीना उचित नही, अनासक्त भाव से खान पान करना, प्रासुक निर्दोप आहार-पानी ग्रहण करना सासारिक विषय नही है। विषयानन्द के लिए नही, जीवन-निर्वाह के लिए चौकी-पट्टा, भूमि, प्रासन, अकृत्रिम वायु आदि का उपयोग करना सासारिक सग नही कहा जा सकता।
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योग : एक चिन्तन ]
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