________________
३१. प्रायश्चित्त करण
सस्कारो को तोडने का मुख्य उपाय है-प्रायश्चित्त-करण | प्रशुभ संस्कारो को तोडने के लिए तीन बातों की आवश्यकता होती है
i
१. कृत प्रपराधी को स्वीकार करना ।
२
श्रपराध जन्य दोष से मुक्त होने के लिए मन मे सच्ची
भावना जागृत करना ।
अपने कृत्यों पर पश्चात्ताप करना ।
3
गुरुप्रो के समझाने से आपने अपराध स्वीकार कर लिया, उसे दूर करने की भावना भी हुई, बस ध्रुव पश्चात्ताप की कमी है । पश्चात्ताप का अर्थ है - अपने द्वारा किए किसी दुष्कृत कार्य के प्रति अपने को धिक्कारना ? मैंने यह कार्य किया ही क्यो ? इस तरह अपने दुष्कृती ग्रात्मा की निन्दना करना, में वडा पापी हूं। इस तरह गर्हणा - ग्रात्मग्लानि करना, "ऐसे दुष्कृत्य पुन कभी नहीं करूंगा" यह प्रण करना 1.
आत्मग्लानि ऐसी स्वाभाविक होनी चाहिए जैसी कि माता को अपने पुत्र को पीटने पर ग्लानि उत्पन्न होती है ।
पश्चात्ताप कारण है और प्रायश्चित कार्य है । पश्चात्ताप किए बिना प्रायश्चित्त नही किया जा सकता । जो स्वयं श्रात्म
२०० ]
[ योग एक चिन्तन