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श्रीधे मुख वाले कमल को जलाने लगी है, जलाते हए वह अग्नि शिस्त्रा मेरे मस्तक तक आ गई है, फिर वह अग्निशिवा गरीर के दोनो ओर रेखा रूप पाकर ऊपर की ओर दोनो कोनो के रूप में आपस मे मिल गई हैं । शरीर के चारो ओर वह गिखा त्रिकोण रूप हो गई है। अब इस त्रिकोण की तीनो रेखायो पर र र र र र र र रूप अग्नि-तत्त्व वेष्टित है।
इसके तीनो कोनो मे बाहर की ओर अग्निमय स्वस्तिक है। भीतर तीनो कोनो मे अग्निमय 'ॐ' लिखे है । ऐसा भी चिन्तन करे कि यह मण्डल भीतर तो पाठ कर्मों को और बाहर शरीर को दग्ध करके भस्म बना रहा है। शनैः शनै वह गान्त हो रहा है, परिणाम स्वरूप वह अग्नि-शिखा जहा से उठी थी वहीं समा गई है। इस प्रकार का चिन्तन करना प्राग्ने यी धारणा है।
आग्नेया
र र र र र र र र र र र र र र र र र र
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homoon
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योग एक चिन्तन