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गाय-भैस, घोडा-ऊट आदि पश-रखने का. खेत, मकान, दुकान आदि रखने की सीमा का बन्धन करना- इच्छा-परिमाण व्रत, है । गृहस्थ आवश्यकताओ की पूर्ति के लिए ही उक्त पदार्थो की मर्यादा करता है, इच्छाप्रो को सीमित करता है, अन्याय-अनीति-अत्याचार से द्रव्य का उपार्जन नहीं करता, धर्म से आजीविका कमाता है, रिश्वत नही लेता, काला धन नही कमाता, यही उसका इच्छापरिमाण व्रत है। अहिंसक, जबान का सच्चा, हाथ का सुच्चा, और लंगोट को पक्का होता है । उपर्युक्त गुणो को धारण कर और सतोष तथा उदारता से धर्म-दान देना जीवन-उत्थान का मूल मन्त्र है। भूलगुणो से मानव सर्व-पूज्य बन जाता है।
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[ योग : एक चिन्तन