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(इ) पूर्वार्ध - प्राकृत भाषा मे इसे पुरिमड्ड कहते हैं । दिनके चार पहर होते हैं। दो पहर की पूर्णता सदैव साढे बारह वजे होती है । इसी को दिन का पूर्वार्ध भी कहते हैं । दो पहर तक सभी प्रकार के आहार का त्याग करना पूर्वार्ध प्रत्याख्यान
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कहलाता है ।
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(ई) एकाशना - दिन में एक बार भोजन करना । इस तप मे कम से कम पौरुषी के बाद ही एक वार भोजन करने की परम्परा प्राचीन काल से चली ग्रा रही है । एकाशना मे या बियासना मे साधक भोजन करते समय अशन-पान, खादिम, स्वदिम यादि चारो प्रकार का आहार कर सकता है । उसके बाद, सभी तरह के आहार का त्याग करना होता है ।
( उ ) एक स्थान - इसका भावार्थ है दिन मे एक ही आसन से और एक ही बार भोजन करना । दाहिने हाथ एव मुख के अलावा शेष सब प्रगो को हिलाए बिना ही भोजन करना, वह भी एक ही वार । भोजन करते समय जिस ग्रग - विन्यास से ' वैठा है उसी ग्रासन से बैठना और पानी भी उसी आसन से बैठे हुए पीना एक स्थान तप है । 11
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एकाशना मे भोजन करते समय सुन्न पड जाने से हाथ-पैर आदि गो को बैठे बैठे सिकोडना-पसारना, शरीर का ग्रागे-पीछे . हिलाना बुलाना किया जा सकता है, जब कि एक स्थान मे ये सव क्रियाए वद करके काय गुप्ति के साथ भोजन करना पडता है । यह तप करना भी कोई साधारण काम नहीं है !
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1. (क) प्राचाम्ल - श्रयबिल मे दूध, दही, घी, तेल, गुड, शक्कर, खाड, पक्वान्न प्रादि किसी भी तरह का स्वादु भोजन,
योग एक चिन्तन ]
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