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प्रागम-वाणी विशेप रूप से सार्थक होती है ।
साधु को प्रतिक्षण शास्त्रोक्त समाचारी के अनुष्ठान मे इस प्रकार सलग्न रहना चाहिए जिससे शक्ति मन, वाणी और काय की प्रवृत्ति सतत धर्म के प्रति अभिमुख बनी रहे । समाचारी का प्राशय है, वे धार्मिक क्रियाए जिनका पाचरण सम्यक् रूप से किया जाए, अथवा जिसका प्राचरण समान रूप से किया जाए, जैसे सभी प्राणियो को खाद्य, पेय एव वायु प्रादि जीवन-उपयोगी पदार्थों की समान रूप से आवश्यकता रहती है, वैसे ही साधु समुदाय के लिये समाचारी की आवश्यकता भी अनिवार्य है। समाचारी में सभी साधनो का समावेश हो जाता ।
समाचारी को सामाचारी भी कहा जाता है । सामाचारी तीन प्रकार की होती है-प्रोघ-सामाचारी, दशविध सामाचारी और दश-विभाग सामाचारी। इनमे अोघ-सामाचारी के सात भेद हैं, जैसे कि १ प्रतिलेखन २. पिण्ड ३ उपधिप्रमाण ४. अनायतवर्जन ५ प्रतिसेवना ६ अालोचना और ७, विशोधि ।'
सामाचारी का यह विभाग व्यवहार सूत्र, वृहत्कल्प, दशश्रुतस्कन्ध जोतकल्प कल्पसूत्र प्रादि छे सूत्रो मे वर्णित है। दविध सामाचारी की परिचयात्मक व्याख्या इस प्रकार है
१ अावश्यकी सामाचारी-साधु जिस मकान या उपाश्रय मे ठहरा हो, उससे बाहर न जाना यह उसके लिये दैनिक क्रियाकलाप को सामान्य विधि है । विशेप विधि के अनुसार आवश्यक कार्य होने पर वह उपाश्रय से बाहर जा सकता है । उस समय उसका यह कर्त्तव्य बन जाता है कि यदि आवश्यक कार्य के लिये १ प्रोष-नियुक्ति २ योग एक चिन्तन
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