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एव अनुसंधान करना उनकी प्राना का रहस्य जानने के लिए मन को एकाग्र करना प्रामाविचय धर्म-ध्यान है।
। भगवान की प्राज्ञा को सत्य समझना, उस पर पूर्णश्रद्धा रखना, नव-तत्त्वो मे किसी एक तत्त्व का चिंतन-मनन करना यदि कोई तत्त्व समझ मे न पाए तो उममे गका न करना, वीतराग भगवान की वाणी मे मन को एकाग्र करना और विश्वास रखना कि प्रभुवाणी ही अर्थरूप है-परमार्थ रूप है तथा शेप सब कुछ अनर्थ रूप है।
वाणी तीन तरह की होती है-रोचक, भयानक और यथार्थ । वीतराग प्रभु की वाणो केवल यथार्थ हो होती है जबकि अल्पन की वाणो यथार्थ कम होतो है, रोचक और भयानक अधिक होती है। जिसका चित कपायो से अनुरजित है, उसमे सत्यता की मात्रा अत्यल्प ही होती है। अतः वीतराग प्रभु की वाणी मे असत्याश लेश मात्र भी नही होता । अागम-समुद्र, मे आत्मकल्याण के अनमोल-रत्न भरे पड़े है, जिनसे क्षणमात्र मे ही आध्यात्मिक दरिद्रता नष्ट होकर सदा-सदा के लिए आत्मा आध्यात्मिक विभूतियो मे समृद्ध बन जाता है। इस प्रकार अपनी सूझ-बूझ से जिन-वाणी मे मनोयोग देना धर्म-ध्यान है।
२ अपाय-विचय-अठारह तरह के पापो एवं दोपो के स्वरूप को जानकर उनसे छुटकारा पाने के लिए मनोयोग देना अपाय-विचय धर्मध्यान है । अपाय का अर्थ है हानि एव दुख ।
अपाय चार प्रकार का होता है-द्रव्य-अपाय, क्षेत्रापाय, कालापाय और भावापाय। जो भौतिकद्रव्य सुख एव आनन्द के गोषक एव मारक हैं वे द्रव्यापाय हैं। . १७६]
[ योग एक चिन्तन