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'तपस्वी' परायणता-जन्य दुईलता बताना तप-चोरी एक साधु शरीर से दुर्वल है और दूसरा तपस्वी साधु तप-परायणता के कारण दुर्बल है, ऐसी दशा में किसी ने भ्रम से दुर्वल साधु से “पूछा क्या महातपस्वी श्राप ही हैं ? तवं माया की भाषा में उत्तर
देना, या मीन रहना, जिस से कि दूसरे की मिथ्याधारणा बढे, यह -भी. चोरी का ही एक रूप है। ___एक ही नाम के दो व्यक्ति है, एक प्रसिद्ध वक्ता है दूसरा साधारण है । पूछने वाले ने पूछा "क्या प्रसिद्ध वक्ता या व्याख्यान वाचस्पति आप ही है ?" यदि साधारण “सत इसके उत्तर मे कपट की भापा-मे-बोलता है, या मौन से उत्तर देता है। तो यह भी वचन-चोरी का ही एक रूप है। इससे माया-चारिता बढती हैं।
इसी तरह एक साधु, साधु बनने से पहले राजकुमार था दूसरा साधारण कुल मे जन्मा था। नाम दोनो साधुओ का एक समान है। किसी ने दूसरे से पूछा, "अमुक राजकुमार ने प्रव्रज्या ग्रहण की थी तो क्या वे आप ही है ? इस का उत्तर यदि वह माया की भाषा मे देता है तो वह भी चोर है। -- दो सन्तो का नाम समान है, उनमे एक का प्राचार विशुद्ध है, दूसरा साधारण औचार वाला है। किसी ने साधारण आचार वाले से पूछा "जो महात्मा उच्च संयमी हैं, क्या वे आप ही है ?" वह यदि माया की भाषा में जवाब देता है 'यी चुप रहता है तो वह आचार-चोर है।'
किसी ने किसी बहुश्रुत से पूछा-'"भते-1 इस पाठ-की-आप ने क्या धारणा की है ?" ज्ञानी ने पही उत्तर दिया। पूछने वाला कहता है मेरी भी यही धारणा है, मैंने तो श्राप से केवल परीक्षा योग . एक चिन्तन
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