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से होता है। यह व्रत मूलगुण रूप पाच महाव्रतो और तपस्या आदि उत्तरगुण दोनो का स्पर्श करता है। यह व्रतं अहिंसा श्रादि सभी महाव्रतो का पूरक एव पोपक है।
रात्रि-भोजन-परित्याग से होने वाले लाभ
कोई भी व्यक्ति किसी न किसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए ही. प्रवृत्ति और निवृत्ति करता है । रात्रि भोजन से निवृत्ति होने पर साधक को किन-किन गुणो की प्राप्ति होती है ? यह विचारणीय प्रश्न है। विचारशील मुनीश्वरो का कथन है कि रात को यदि पाहार न किया जाए तो अनन्त जीवो को अभयदान मिलता है। जो सूक्ष्म जन्तु रात को नजर नही आते, उनकी रक्षा रात्रि मे भोजन एवं पान के त्याग से स्वय ही हो जाती है । रात्रि-भोजन के त्याग का सभी तीर्थड्रो ने एक स्वर से समर्थन किया है ।।
रात्रि भोजन के त्याग से. नित्य ही तप का लाभ होता है, क्योकि इससे तीस अहोरात्र में से पन्द्रह दिदासप हो जाता है . और कहा भी जाता है कि जो बुद्धिमान व्यक्ति रात्रि-भोजन कभी नही करते; उनका एक पक्ष का उपवास भी मासोपवास का फल देता है । अहिंसा महाव्रत की रक्षा भी हो जाती है । खाने-पीने की कोई भी वस्तु रात को अपने पास नही रखना, इससे भी व्रत भी निर्दोष रहता है और अहिंसा भी । जैनेतर सस्कृतियों में भी रात्रि-भोजन का निपेध किया गया है-रात्रि में हवन करना स्नान करना, श्राद्ध करना, देव-पूजन करना और दान देना ता--
१ ये रानी सर्वदाऽऽहार, वर्जयन्ति सुमेधस ।
तेपा पक्षोश्वासस्य, फलमासे न जायते ।। १२८ ]
। योग एक चिन्तन