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निषिद्ध है ही, भोजन तो विशेषकर वजित है।' रात्रि-भोजन से हानियां- . . .
रात को भोजन करते समय यदि कोटी खाने मे श्री जाए तो बुद्धि का नाश होता है, जू खाए जाने पर जलोदर रोग हो जाता है, मक्खी खाने पर उल्टी आ जाती है, मकडी खाने पर कोर्ट पैदा हो जाता है, काटा या डका खाने मे आ जाए तो गले मे पीडा हो जाती है, मच्छर खाने में आ जाए तो सन्निपात का रोग हो जाता है, विच्छू का भक्षण तालु मे घाव कर देता है और यदि वाल गले में फंस जाए तो कठ का माधुर्य समाप्त हो जाता है; क्योकि रात्रि मे ऐसे जीवो की हिंसा बहतायत से होती है और रात्रि के समय भोजन मे ऐसे जीवो के पड जाने की सम्भावना भी अंधिक रहती है, - अत. रात्रि-भोजन शरीर के लिए अत्यन्त हानिकारक है।
रात्रि-भोजन अनेक दृष्टियो से हानिप्रद है। रात्रि-भोजन अधा खाना है। इसकी निवृत्ति से मूलगुण और उत्तरगुण -दोनो... की पुष्टि होती है । अंत. यह व्रत भी चारित्र का ही अग है। .
जब तेईसवे तीर्थङ्कर के साधु-साध्वी चौबीसवे तीर्थङ्कर के शासन मे प्रवेश करते हैं, तब.. निरतिचार छेदोपस्थापनीय १ नवाहुतिनं च स्नान, न श्राद्ध देवतार्चनम्। “ । । दान न दिहित रात्री, भोजन तु विशेषत ॥ २. मेधा पिपीलिकाहन्ति, यूका कुर्याज्जलोदरं । । ।
कुरुते मक्षिका वाति कुष्ठ रोग'च लूतिका ।। । . . . , कटको दारुखण्ड च, विर्तनोति गले व्यथा ।। . । मशकः सन्निपात,च, ताल विध्यति वृश्चिकः ।। (योगशास्त्र). ., योग : एक चिन्तन
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