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५ परिग्रह - विरमण महाव्रत
परिग्रह दो प्रकार का है - द्रव्य परिग्रह और भाव-परिग्रह | ममत्व का कारण होने से सभी वाह्य पदार्थों का संग्रह द्रव्यपरिग्रह है । पदार्थों पर ममत्व का होना भाव -परिग्रह है । द्रव्यपरिग्रह और भाव - परिग्रह दोनो के त्याग से साधक, अपरिग्रही बन सकता है । इन दोनो मे भाव परिग्रह की मुख्यता है. उसके निवृत्त होने पर साधक शरीर एव धर्मोपकरण` रखता हुग्रा उन्हे धारण करता हुआ भी अपरिग्रही माना जाता है।
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नौ प्रकार का बाह्य परिग्रह और चौदह प्रकार का ग्राभ्यन्तर परिग्रह होता है । जैसे कि खेत, मकान, दुकान आदि वस्तु सोना, चादी, मणि-रत्न, नौकर-चाकर, पशुधन, धन-धान्य, पीतल, ताम्बा, लोहा आदि धातुम्रो का सचय बाह्य परिग्रह है । ये सव पदार्थ ममत्व के कारण हैं, इनके लिए मानव इधर-उधर दौड धूप करता है । साधना-शील व्यक्ति इनको जीवन के लिये साधन मानता है और परिग्रह- प्रिय व्यक्ति उनके लिये जीवन मानता है । दोनो मे यही अन्तर है । जड श्रौर चेतन, कनक और कामिनी, स्वजन और परिजन, यान वाहन, दास-दासी, गाय, भैस आदि सब परिग्रह के अग है । इन्हें पाने की इच्छा रखना, इनके संग्रह के लिये यत्नशील रहना, सगृहीत पदार्थों पर ममत्व रखना, इस प्रकार सासारिक पदार्थों सम्बन्धी इच्छा, सग्रह और मूर्छा - ममता ये सब परिग्रह के ही रूप हैं । ममत्व के हट जाने पर इच्छा और सग्रह की निवृत्ति स्वत ही हो जाती है ।
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आभ्यन्तर परिग्रह के चौदह रूप हैं - क्रोध, मान, माया, लोभ, राग, द्वेष, मिथ्यात्व, वेद, अरति, रति, हास्य, शोक, भय और जुगुप्सा अर्थात् घृणा ये सब आभ्यन्तर परिग्रह के रूप हैं ।
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[ योग. एक चिन्तन
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