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सर्वकाम विरक्तता है। ___काम शब्द का अर्थ काम-वासना भी है। वेद-मोहनीय कर्म-प्रकृति के उदय से मन, वाणी और काय मे जो विकृतिया
आती हैं, यह उन विकृतियो का ही परिणाम है। जैसे भौतिकसिद्धिया साधक को भटका देती हैं, वैसे ही भौतिक एव वासनाजन्य प्रानन्द भी आध्यात्मिक आनन्द से साधक को भटका देता है। वेद का अर्थ है-वासना की पूर्ति के लिए विपरीत लिंगी की चाहना। उस वेद-मोहनीय-कर्म प्रकृति की सत्ता को सयमपूर्वक तप द्वारा बलहीन किया जाता है। सत्ता के वलहीन होने से उसका उदय भी मद, मंदतर एव मदतम हो जाना स्वाभाविक है । जव संचित कर्म-प्रकृति की स्थिति और उसके फल देने की शक्ति नही जैसी हो जाती है, तब उस प्रकृति का उदय साधक के जीवन को प्रभावित नहीं कर पाता। तभी उसमे सर्व-कामविरक्तता की साधना जागृत होती है । कामाग्नि को योग से शान्त किया जाता है। सबसे पहले कपायाग्नि को शान्त किया जाता है, उस से मन शान्त हो जाता है। मनके शान्त होने पर इन्द्रिया भी अपने-अपने विषय को ग्रहण करने के लिए उत्सुक नही रह जाती। इन सबके शान्त हो जाने पर वासना स्वय शान्त हो जाती है । इस क्रम से सर्व-काम-विरक्तता नामक योग-संग्रह की आराधना सहज हो जाती है। साधक को सदैव सर्वकाम विरक्तता की साधना का अभ्यास करते रहना चाहिए।
पश्चिमी वैज्ञानिको ने इच्छा के आठ भेद किए है। मैं समझता हू कि उनके द्वारा प्रस्तुत भेदो की अपेक्षा जैनागमो द्वारा प्रस्तुत उपर्युक्त इच्छा-विभाग अधिक उपयुक्त एव मनो
वैज्ञानिक है। योग • एक चिन्तन]
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