________________
इसके भी मुख्यत. दो भेद हैं-देश-सामायिक और सर्वसामायिक । जो दो घडी प्रादि के रूप मे समय की सीमा बाधकर दो करण एव तीन योग से सामायिक की जाती है वह देश-सामायिक है । इसका अधिकारी प्रादर्श गृहस्थ होता है।
जो तीन योग और तीन करण से धारण किया जाता है तथा जिसमे समय और देश का सीमा नही बाधी जाती, जो ग्रहण-काल से लेकर जावन भर के लिए धारण किया जाता है. वह सर्व-सामायिक है । जो नर-नारी सर्व सामायिक को धारण करते है वे साधु एव साध्वी कहे जाते है।
छेदोपस्थापनीय-जिस चारित्र में पूर्व पर्याय का छेद एव महाव्रतो का उपस्थापन (प्रारोपण) होता है, अर्थात् पूर्व पर्याय का छेद करके जो महाव्रत दिए जाते है, उसे 'छेदोपस्थापनीय" कहते है। सार्वभौम पाच महाव्रतो का पालन साधुत्व की अनिवार्य शर्त है, इनका पालन किए बिना कोई भी साधक साधु नही कहला सकता। पांचो महाव्रतो का परस्पर एक दूसरे से सम्बन्ध है। एक महाव्रत के भग होने से सभी महाव्रत भग हो जाते है और एक के दूपिन होने से सभी महाव्रत दूपित हो जाते है। प्रसगानुसार महाव्रतो का मक्षिप्त विवरण प्रस्तुत करना भी आवश्यक होगा।
१. प्राणातिपात-विरमण-महाव्रत
प्राणो का अतिपात, विनाग अर्थात् अपहरण करना ही प्राणातिपात है। विरमण का अर्थ है उस प्राणातिपात से निवृति, अर्थात् हिंसा से सर्वथा विरक्त होना ही पहला महाव्रत है । अहिंसा दो प्रकार की होती है-विधिरूपा और निषेधरूपा। यदि दोनो मे परस्पर तुलना की जाए तो निपेधरूपा अहिंसा का क्षत्र विशाल ११२]
[ योग एक चिन्तन