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विनय, बहुश्रुत, सयम एव विवेक का परस्पर घनिष्ठ सवध है। विनय से ही मानव गुणो का भण्डार बनता है "विनयाद् याति पात्रताम् " अभिमान की कमी से विनय की पात्रता वढती है | अभिमान जीवन मे कठोरता पैदा करता है, उसके निकल जाने से श्रात्मा मे उस विनय का विकास होता है जिससे साधक सुगति के पथ पर प्रगति करता हुआ महान् योगी बन कर आत्मोद्धार कर सकता है ।
योग एक चिन्तन
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