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जैसे कि
(क) अज्ञान-प्रमाद-मोक्षमार्ग से विल्कुल अनभिज्ञ रहना. अजान-प्रमाद है।
(ख) संशय-प्रमाद -मोक्षमार्ग के प्रति सशयशील रहना, क्या पता मोक्ष मार्ग कोई है या नही ? क्या पता नव तत्व सत्य है या मिथ्या ? इस तरह का संशय होना सगय-प्रमाद है।
(ग) मिथ्याज्ञान-प्रमाद-तथ्य से विपरीत ज्ञान मिथ्याज्ञानप्रमाद है।
(घ) राग-प्रमाद-दृष्टिराग, स्नेहराग और काम-राग ये राग के तीन भेद है। मोह- के दलदल मे फसाने वाला यदि कोई विकार है तो वह राग ही है। वह किसी मानव मे तीव्र होता है
और किसी. मे मद. 1. हजारो अवगुणो के होते हुए भी उन को छोड़ने के लिए मनोभूमिका तैयार न होने से. वह राग है।
(ड) द्वेष-प्रमाद-जिस कारण से अप्रीति पैदा हो जाए वह द्वप है, इसका स्वभाव है दूसरे मे, नफरत करना। जिस पर-इसकी क्रूर दृष्टि हो जाती है वह, भले ही हजारो गुणो-से सपन्न-क्यो न हो, उसे अपनाने के लिये वह इन्कार ही करता है।
(च) स्मति-भ्रश-प्रमाद-अपने कर्तव्य को भूल जाना - स्मृति-भ्र श-प्रमाद है।
(छ) धर्म:अनादर-प्रमाद-केवलि-भापित -धर्म का अनादर करना-एव उसकी प्राप्ति के लिये यत्न न करना ।
(ज) योग-दुष्प्रणिधान-प्रमाद-मन, वचन और काय को अशुभ क्रियानो मे लगाना प्रमाद है । ... - कुछ आचार्यों ने प्रमाद के पाच रूप बतलाए हैं जैसे कियोग , एक चिन्तन