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. लोभ व्यक्ति को विविध प्रकार से भौतिक पदार्थो के ऐसे आकर्पणो मे बाध देता है जिनका मिटना अशक्य हो जाता है । जैसे हडताल का रंग वस्त्र या तन्तु पर से कभी नहीं उतरता, वैसे ही अनन्तानुवधी लोभ का रग अमिट होता है।
इस प्रकार के क्रोध मान, माया और लोभ रूप कषाय अनन्तानुवधी होते है । इस प्रकार का कपाय डाकू, कसाई, शिकारी और अधर्म-रत राजाप्रो मे पाया ज ता है। इस कषाय का अस्तित्व आदि के तीन गुणस्थानो में पाया जाता है । इस अनन्तानुबधी कपाय पर विजय पाकर उसकी निवृत्ति करना संवर है। ..
जिस कपाय का उदय होने पर साधक सम्यग्दृष्टि तो रह सकता है, किन्नु धावक-धर्म की उपलब्धि नहीं कर सकता, उसे अप्रत्याख्यान कषाय कहते हैं। जिस जीव मे.इस स्तर का कषाय उदित हो जाता है वह अधिक से अधिक एक वर्ष तक ठहर सकता है। इसके उदय होने पर तिर्यञ्चगति के योग्य कर्मो का वध
और थावकवृत्ति का घात किया जाता है। इसका स्वरूप इस प्रकार है- ", , , ..
जिसका क्रोध उस दरार के समान है जो सूखे तालाब आदि मे मिट्टी के फट जाने से पड़ जाती है और वर्षा हो जाने पर वह दरार फिर स्वत हो मिल जाती है। इस स्तर का क्रोध कुछ उपायो से शान्त हो सकता है । वह इतनी जल्दी शान्त नही होता फिर भी उसके अस्तित्व की अवधि वर्ष भर मानी जाती है।
'जिसका मान हड्डी के स्तम्भ के समान होता है उसे बड़े परिश्रम से नमाया जा सकता है आसानी से नहीं। किसी वज्ञानिक विधि से ही उस स्तम्भ' मे कुछ नम्रता लाई जा सकती है साधारण तरीके से नही । इसी प्रकार कुछ साधको मे मान इस योग एक चिन्तन ]
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